
भोपाल। (विचार एक प्रयास) मध्यप्रदेश में आबकारी विभाग की बात अगर निकलती है तो संजीव दुबे का नाम सबसे विवादित व चर्चित अफसरों में सबसे पहले लिया जाता है,अपने बोल्ड अंदाज के लिए भी दुबे विभाग के साथ ही शराब कारोबारियों के बीच हमेशा चर्चा का विषय रहते है,आबकारी में किसी भी नए घोटाले की आहट मीडिया को संजीव दुबे के समय इंदौर में हुए 42 करोड़ के आबकारी चालान घोटाले को उभारने के लिए हथियार दे देता है, हालांकि उक्त प्रकरण में सबसे ज्यादा रिकवरी भी दुबे के समय ही हुई,विभाग प्रमुख को दुबे के बाद से इंदौर में पदस्थ हुए तमाम अफसरों से पूछना चाहिए कि बाकी की राशि की रिकवरी के लिए उन्होंने क्या प्रयास किये!
गुजरात मे शराब की तस्करी हो या धार,झाबुआ,अलीराजपुर में आबकारी की टीपी का खेल हो या फिर लॉक डाउन के समय एमआरपी – एमएसपी का खेल,मीडिया को टीआरपी के लिए 42 करोड़ का खेल ही सबसे बड़ा लगता है,इसका एक कारण विभाग में दुबे के चहिते भी है,दुबे के दूसरे पहलू पर अगर बात करे तो एकमात्र दुबे ही ऐसे अधिकारी है जिन्होंने कोरोना काल मे भी जिले के सभी ठेकेदारो को एकजुट कर शासन के निर्देशानुसार शराब दुकान खोलने के लिए राजी किया था,आज तक के आबकारी के इतिहास में राजधानी जो कि रसूखदारों की नगरी मानी जाती है,जहाँ हर दूसरे घर मे नेता और अफसर निवास करते है,वहाँ अवैध शराब माफियाओ/तस्करों के खिलाफ निरंतर कार्यवाही कर अवैध शराब विक्रय से शासन को होने वाले राजस्व के नुकसान को कम किया साथ ही शराब माफियाओ के हौसले पस्त कर दिए है
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